
रंजीत कुमार (वरिष्ठ पत्रकार)
मनीला में चार देशों अमेरिका, जापान, भारत और आस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रालय के आला अधिकारियों ने साझा बैठक कर विश्व राजनीति में नई सनसनी पैदा कर दी है क्योंकि यह नया उभरता हु्आ गुट चीन की विस्तारवादी नीतियों को चुनौती देता हुआ लगता है। इस बैठक के बाद चारों देशों ने आगे चर्चा जारी रखने पर सहमति दी लेकिन इस गुट का कोई नाम देने से परहेज किया। केवल आस्ट्रेलिया और अमरीका ने इसे क्वाड (यानी चार) की संज्ञा दी है। चारों देशों ने कोई साझा बयान जारी नहीं किया। बैठक के बारे में सभी ने अपने नजरिये से आधिकारिक विज्ञप्ति जारी की।
चारों देशों द्वारा कोई साझा बयान जारी नहीं करना इस बात का सूचक है कि चारों देश चतुर्पक्षीय बैठक करने के बाद भी कई मसलों पर खुल कर साझा तौर पर नहीं बोलना चाहते हैं। बाकी तीनों देशों के चीन के साथ गहरे आर्थिक रिश्ते हैं इसलिये भारत को बहुत संभल कर इस चर्तुपक्षीय मंच से अपनी बात रखनी चाहिये। बैठक में एशिया प्रशांत इलाके को जिस तरह हिंद प्रशांत का नाम दिया गया है उसमें भारत को चर्तुपक्षीय बैठक के मुख्य केन्द्र के तौर पर पेश किया गया है। इससे इस बात का खतरा पैदा होता है कि कहीं चारों देश भारत के कंधे पर बंदूक रखकर तो चीन को निशाना नहीं बनाना चाहते हैं? भारत चीन का पड़ोसी है और दोनों देशों के बीच गहरे सीमा और प्रादेशिक विवाद हैं जिस वजह से दोनों देशों के रिश्तों में तनाव रहता है। न केवल यही बल्कि विश्व रंगमंच पर भी चीन भारत को एक प्रतिस्पर्धी के तौर पर देखता है। इसी वजह से चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और न्युक्लियर सप्लायर्स ग्रुप जैसी विशिष्ट अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में भारत को सदस्यता दिलवाने में बाधक बन रहा है। आतकंवाद के मसले पर भी चीन ने भारत विरोधी रुख अपनाया हुआ है।
भारत के अलावा जापान के भी चीन के साथ रिश्ते काफी तल्ख चल रहे हैं और दोनों देशों के बीच समुद्री सीमाओं को लेकर भी गम्भीर विवाद रहता है। जापान, अमेरिका और आस्ट्रेलिया अपनी जगह काफी शक्तिशाली हैं और चीन यदि उन्हें किसी तरह तंग करने की कोशिश करता है तो अमेरिका इन दोनों देशों को आपसी संधियों के आधार पर सुरक्षा मदद देने को तैयार होगा लेकिन यदि चीन ने भारत के साथ किसी तरह का सैन्य पंगा लिया तो अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया क्या भारत के पक्ष में खुल कर सामने आएगा? क्या उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन(नाटो) की तरह यह गुट उभर सकता है जो जरुरत पडऩे पर अपने साथी देशों की सैन्य मदद को तैयार होगा? क्या दक्षिण चीन सागर में चीन यदि हवाई रक्षा पहचान क्षेत्र ( एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन) स्थापित करता है और इन चारों देशों के जहाजों पर किसी तरह की उड़ान बाधा लगाता है तो चारों देश एकजुट हो कर इसका मुकाबला करने को तैयार होंगे? यदि ऐसा हुआ तो प्रशांत सागर में भारी सैन्य तनाव विकसित हो सकता है। चारों देशों को ऐसी रणनीति अपनानी होगी कि कूटनीति के जरिये ही चीन अपना रुख नरम कर ले। भारत को भी इस गुट का इस्तेमाल इसी हद तक करना होगा कि चीन के खिलाफ सीधी टक्कर की नौबत नहीं आ जाए क्योंकि तब इस बात की कोई गारंटी नहीं कि क्वाड के बाकी तीन देश भारत के पक्ष में सीना तान कर खड़े दिखेंगे।
