रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पांच अक्टूबर को शिखर बैठक के दौरान रूसी S-400 मिसाइल सिस्टम का सौदा पूरी दुनिया के सामरिक हलकों में चर्चा का मसला बन गया था लेकिन इस सौदे पर सबसे अधिक चीन और पाकिस्तान की निगाह थी क्योंकि उन्हें लग रहा है कि वे अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों के बल पर भारत को नहीं धमका सकेंगे। चीन और पाकिस्तान ने जिस तरह भारत को धमकाने वाली परमाणु बैलिस्टिक मिसाइलों की तैनाती की हुई है उससे बचाव के लिये भारत को सुरक्षात्मक उपाय करना जरूरी था। पाकिस्तान के सैन्य और राजनीतिक नेता और इस देश का जेहादी तबका जिस तरह से भारत को धमकियां देता रहा है और चीन ने भी जिस तरह से भारत की ओर निशाना कर तिब्बत में परमाणु बैलिस्टिक मिसाइलें तैनात कर दी हैं उसके मद्देनजर भारत के लिये यह जरूरी हो गया था कि वह अपनी राजधानी दिल्ली औऱ अन्य महानगरों को बचाने के लिये यह तात्कालिक उपाय करता। हालांकि भारतीय रक्षा शोध एवं अनुसंधान संगठन (DRDO) ने भी भारतीय सेनाओं को मिसाइल रक्षा प्रणाली मुहैया कराने की यथासम्भव कोशिश की है और इसके अब तक करीब दर्जन परीक्षण किये जा चुके हैं लेकिन भारतीय स्वदेशी मिसाइल को तैनात करने लायक नहीं समझा गया होगा तभी रक्षा कर्णधारों ने रूस से ऐसी मिसाइल प्रणाली खरीदने का फैसला किया जो दुश्मन के सारे मंसूबों को नाकाम कर दे। सन 2020 से जब S-400 की पहली खेप तैनात होने लगेगी तब भारतीय जनमानस को यह आश्वस्त किया जा सकेगा कि उन्हें दुश्मन के मिसाइली हमले के ब्लैकमेल से बचाने के उपाय कर लिये गए हैं। किसी भी देश के रक्षा कर्णधारों का यह फर्ज बनता है कि दुश्मन के नापाक इरादों को बेअसर करने के लिये सभी जरूरी इतंजाम किसी भी कीमत पर करे।
रूस से पांच अरब डालर का इतना महंगा सौदा कर भारतीय रक्षा कर्णधारों ने अपनी जनता के प्रति अपने कर्तव्य का ही निर्वाह किया है। S-400 को चीन ने भी रूस से खरीदा है और यह काफी रोचक है कि चीन और रूस के बीच सामरिक साझेदरी का गहरा रिश्ता होते हुए भी रूस ने भारत को अपनी अत्यधिक उच्च तकनीक वाली S-400 मिसाइल की सप्लाई करने का फैसला किया। आखिर S-400 को तैनात करने के पीछे एक बड़ा उद्देश्य चीनी बैलिस्टिक मिसाइलों से बचाव करना भी है।
S-400 मिसाइलों को भारत को बेचने से रोकने के लिये अमेरिका ने जिस तरह भारत पर धमकी भरा दबाव बनाया था उसके मद्देनजर भारत ने सामरिक महत्व का जो फैसला किया है वह दुनिया के बाकी देशों के लिये एक संकेत है कि भारत किसी भी ताकतवर देश की धमिकयों के आगे झुकने वाला नहीं है। अमेरिका को भी साफ समझ लेना चाहिये कि उसकी उंगलियों पर सारी दुनिया भले ही नाचे भारत तो कम से कम नहीं नाच सकता। भारत के अपने राष्ट्रीय सामरिक हित हैं और भारतीय रक्षा कर्णधारों ने अपने हितों के आगे दूसरे देश के हितों से समझौता नहीं करने का फैसला किया। S-400 का सौदा रोक कर भारत यदि झुकने का संकेत देता तो रूस से भावी रक्षा सम्बन्धों औऱ सहयोग पर प्रतिकूल असर पड़ता जिससे भारत की रक्षा तैयारी पर गहरी आंच आती।
