अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में कोई किसी का न तो स्थायी दोस्त होता है और न ही स्थायी दुश्मन लेकिन दो परस्पर दुश्मन देशों के साथ रिश्ते बना कर चलना काफी जटिल और दुविधा भरा होता है। इसी दुविधा की वजह से न तो भारतीय प्रधानमंत्री कभी फिलस्तीन जाते थे और न ही इजराइल। लेकिन भारत ने पिछले सात दशकों से चली आ रही इस राजनयिक हिचक को तोड़ा है। ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी का गत 17 फरवरी को भारत का दौरा सम्पन्न हुआ है जो इजराइल और अमेरिका का घोषित दुश्मन माना जाता है। अमेरिका के साथ भारत ने अपनी सामरिक साझेदारी को नया रंग दिया है तो इजराइल के साथ भी भारत ने अपने सामरिक और रक्षा सहयोग के रिश्तों पर पड़े पर्दे को उठाया है। जनवरी के मध्य में इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जबर्दस्त आवभगत की और एक महीने के भीतर ही इजराइल के साथ दुश्मनी निभा रहे फिलस्तीन पहुंचे। इस तरह वह पिछले साल इजराइल और फिलस्तीन का दौरा करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।
भारत की कूटनीति यहीं तक नहीं ठहरी। ईरान के राष्ट्रपति 15 से 17 फरवरी तक भारत के दौरे पर आमंत्रित किये गए। भारत ने इस बात की परवाह नहीं की कि ईरान से मधुर रिश्ते बनाने पर अमेरिका नाराज हो जाएगा। इधर ईरान के राष्ट्रपति को भारत बुलाया और इसके एक सप्ताह पहले ही भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज सऊदी अरब के दौरे पर चली गईं जो कि ईरान का दुश्मन देश माना जाता है।
चाहे ईरान हो या इजराइल या अमेरिका या सऊदी अरब। भारत के इन सभी देशों के साथ गहरे सामरिक और आर्थिक हित जुड़े हैं और अपने राष्ट्रीय हितों की कीमत पर ही इनमें से किसी एक देश के साथ कुट्टी कर सकता है। जहां इजराइल भारत की सेनाओं की ताकत बढ़ाने के लिये काफी अहम है वहीं ईरान की अहमियत इस बात में है कि उसके बिना मध्य एशिया और आगे रूस और यूरोप तक भारत सीधा सम्पर्क नहीं बना सकता। भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिये यह जरूरी है कि भारत अपने निर्यात को मध्य एशिया के बाजार तक पहुंचाए। अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिये भारत को ईरान के चाबाहार बंदरगाह का ही सहारा लेना होता है। ईरान से होकर रूस और यूरोप को जोड़ने के लिये नार्थ-साउथ कोरिडोर बनाने का काम चल रहा है जिसके पूरा होने के बाद भारत के निर्यात को नये पंख लगेंगे।
दूसरी ओर भारत को यह भी देखना होगा कि ईरान के साथ दोस्ती बढ़ाते हुए अमेरिका नाराज नहीं हो जाए। सामरिक और आर्थिक क्षेत्रों में भारत के लिये अमेरिका अहम साझेदार बन चुका है। चीन औऱ पाकिस्तान के नापाक इरादों की काट में अमेरिका भारत का महत्वपूर्ण साझेदार उभर रहा है। अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के साथ भारत का एक चर्तुपक्षीय गुट भी उभरने लगा है। हिंद महासागर में अपने सागरीय हितों की रक्षा के लिये जरूरी है कि भारत चुर्तपक्षीय गुट के देशों के साथ नजदीकी सामरिक साझेदारी का रिश्ता विकसित करे।
इस तरह भारतीय रणनीतिकारों ने दो दुश्मन देशों के साथ समान तौर पर दोस्ती का रिश्ता बनाने की कोशिश की है जो साठ और सत्तर के दशक के दौरान निर्गुट आन्दोलन के तहत किसी एक खेमे में नहीं रहने का नया संस्करण ही कहा जा सकता है।
