भारत के साथ सैन्य तनातनी का रिकार्ड चीन ने तोड दिया है। पिछली बार जून, 2017 में भूटान के डोकलाम इलाके में भारतीय सेना के साथ 73 दिनों तक सैन्य तनातनी के रेकार्ड को चीन ने पूर्वी लद्दाख में पीछे छोड दिया है औऱ अब करीब 80 दिनों से अधिक हो गए हैं जब चीनी सेना पूर्वी लद्दाख के इलाकों में आमने सामने की स्थिति में तैनात है। पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाकों में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार भारतीय इलाके में घुसने के बाद जब चीन के आला सैन्य कमांडरों और राजनयिकों के बीच बातचीत हुई तो चीन ने वादा किया कि उसके सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा तक लौट जाएंगे। चीनी सेना ने गत पांच मई को ही पूर्वी लद्दाख के चार इलाकों- गलवान घाटी, गोगरा- हाट स्प्रिंग , देपसांग और पैंगोंग त्सो झील- में घुसपैठ की थी और तब से ही तनातनी बनी हुई है। दोनों देशों के बीच सैन्य तानाव के 80 दिन हो चुके हैं लेकिन चीन शुरु में अपने सैनिकों को पीछे हटाने का वादा करने के बाद अपनी आदत और प्रवृति के अनुरुप मुकरने लगा है। चीन ने भारतीय इलाकों में धोखे से घुसने और वहां जम कर बैठ जाने का उकसाने वाला कदम उठाया है
ऐसा लगता है कि पिछले करीब पौने तीन महीनों के दौरान चीन ने सैन्य और राजनयिक स्तरों पर चार दौरों की बातचीत कर भारत को धोखे में रखने की कोशिश की है कि वह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव दूर करने के लिये प्रतिबद्ध है। लेकिन वास्तव में चीन की कथनी और करनी में भारी फर्क दिख रहा है। पिछले महीने दोनों देशों के सीमा मसले पर नियुक्त विशेष प्रतिनिधियों की बातचीत में भी चीन ने वादा किया था कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान करेगा और पांच मई के पहले की यथास्थिति बहाल करेगा। लेकिन जमीनी हालात कुछ और कहते हैं। चीन अपना असली रंग इस तरह दिखा रहा है कि वह बातचीत चलाकर मसले सुलझाने का भरोसा देना चाहता है जब कि वह वास्तव में बातचीत की आड में भारत को धोखे में रखना चाहता है। भारत को झांसा दे कर वह अपनी समर नीति और सैन्य विस्तारवाद की नीति को लागू कर रहा है।
भारत के सामने दुविधा है कि ऐसे झांसेबाज चीन से कैसे निबटे। चीन की समर नीति इस तरह चलती है कि वह दो कदम आगे बढ कर एक कदम पीछे चला जाता है और कहता है कि उसने अपने कदम पीछे कर लिये। चीन ने इस रणनीति के तहत पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी, गोगरा, हाट स्प्रिंग , देपसांग और पैंगोंग त्सो झील इलाके में घुसपैठ की और कथित समझौते के तहत अपने पांव केवल गलवान घाटी से पीछे हटा लिये जबकि वह गोगरा हाट स्प्रिंग, पैंगोंग त्सो झील इलाके से पीछे हटने को तैयार नहीं है।
चीन के इस टालमटोल के रवैये का भारत ने दृढ़ता से जवाब देने का राष्ट्रीय संकल्प जाहिर किया है और सीमांत इलाकों में चीनी सैन्य धमकियों का जवाब देने के लिये समान तरह की अपनी सैन्य तैनाती कर ली है। सीमांत इलाकों में चीनी सेना के सामने डटे रहने का संकल्प भारत ने दिखाया है। सीमांत इलाकों में चीनी सैन्य बंदरघुडकी का जवाब देने के लिये भारतीय लडाकू विमान सुखोई-30 , मिराज-2000 और मिग-29 उडान भर रहे हैं। भारत की थलसेना अपने सैनिकों को आधुनिकतम शस्त्र प्रणालियों से लैस कर वहां तैनात कर चुकी है। लेकिन भारत युद्ध नहीं चाहता और बातचीत से मसले का हल खोजना चाहता है। शायद इसी वजह से चीन को लग रहा है कि भारत सैन्य कार्रवाई के लिये तैयार नहीं है और वह चीनी सैन्य ताकत के आगे डरा हुआ है।
वास्तव में चीन की यह गलतफहमी है कि वह अपनी सैन्य ताकत का धौंस दिखाकर भारत को अपना इलाका छोडने को मजबूर कर सकता है। भारत ने बार बार चीन को आगाह किया है कि शांति से मसले को सुलझाने की भारत की इच्छा को चीन भारत की सैन्य कमजोरी नहीं समझे। भारत में चीनी राजदूत सुन वेईतुंग ने अपने एक ट्वीट संदेश में कहा है कि भारत और चीन के नेताओं में इतना विवेक है कि वे अपने मसले को दिवपक्षीय बातचीत से सुलझा लेंगे। वास्तव में यह विवेक चीन को दिखाना है। भारत तो दिखा ही रहा है।
