जनरल बिपिन रावत ने पद सम्भालते ही नया दायित्व मिलने का औचित्य सिद्ध कर दिया है। एक जनवरी को जनरल रावत को प्रधान सेनापति की जो जिम्मेदारी सौंपी गई है इसकी कसौटी पर वह खऱे उतरेंगे इसके इरादे उन्होंने स्पष्ट कर दिये हैं। भारतीय सेनाएं पिछले सात दशकों में आपसी तालमेल की कमी से जो हासिल नहीं कर सकीं वह अगले कुछ सालों में जनरल बिपिन रावत को कर दिखाना है। सबसे अहम निर्देश उन्होंने यह दिया है कि तीनों सेनाओं को वांछित नतीजे हासिल करने के इऱादे से काम करना होगा औऱ इस इरादे से सभी को रचनात्मक विचार औऱ प्रस्ताव पेश करने होंगे।
एक जनवरी को पद सम्भालने की औपचारिकताएं पूरी करने के कुछ घंटो के भीतर ही प्रधान सेनापति ने तीनों सेनाओं के आला अधिकारियों की बैठक बुलाई और अपने निर्देशों से साफ संकेत दिया कि वह जल्द से जल्द तीनों सेनाओं को एक साझा कमांडर के तहत काम करते देखना चाहेंगे। एकीकृत रक्षा स्टाफ के मुख्यालय के आला अफसरों की बैठक में दूरगामी महत्व का जो निर्देश उन्होंने दिया वह एयर डिफेंस कमांड की स्थापना को लेकर कहा जा सकता है। इसके लिये उन्होंने निर्देश दिया कि इस साल 30 जून तक एय़र डिफेंस कमांड के गठन का प्रस्ताव तैयार किया जाए। पड़ोसी देशों द्वारा भारत की दिशा में तैनात मिसाइलों के मद्देनजर भारतीय सेनाओं द्वारा एहतियाती कदम उठाना जरूरी हो गया है।
उन्होंने यह निर्देश भी दिया कि तीनों सेनाओं के बीच तालमेल और साझा कार्रवाई के लिये प्रस्ताव इस साल 31 दिसम्बर तक लागू करे। इसके तहत जिन इलाकों में दो या तीन सैन्य स्टेशन हैं उनके संसाधनों के बेहतर और सक्षम इस्तेमाल के लिये साझा लाजिस्टिक्स सपोर्ट पूल बनाने का भी निर्देश दिया है। तीनों सेनाओएं के संसाधनों के सक्षम इस्तेमाल के लिये फैसले लागू किये जाएंगे। इसके अलावा फालतू के समारोहों के आयोजनों में भी कटौती करने की कोशिश होगी ताकि ऐसे समारोहों में भारी संख्या में जवानों का इस्तेमाल नहीं किया जाए।
जनरल रावत ने कालेजियट तरीके से यानी सामूहिक तरीके से काम करने के तरीके की व्याख्या करते हुए कहा कि तीनों सेना प्रमुखों औऱ कोस्ट गार्ड के प्रमुख की राय जरुर ली जाए। ऐसा एक समयबद्ध तरीके से होना चाहिये।
तीनों सेनाओं में बेहतर तालमेल और आपसी संसाधनों को बांट कर इसके सक्षम इस्तेमाल करने के निर्देशों से तीनों सेनाओं के बजटीय खर्च में भी कटौती की जा सकेगी। तीनों सेनाएं कई ऐसे समारोह आयोजित करती हैं जिनसे औपनिवेशिक काल के सैन्य प्रबंधन की बू आती है। आजादी के सात दशकों बाद हमें इन फालतू के दिखावे से बचना होगा। ऐसा कर ही हम तीनों सेनाओं की लड़ाकू क्षमता को पैना बना सकते हैं।
तीनों सेनाओं में तालमेल की जो भारी कमी साल 1999 के करगिल युद्ध में महसूस की गई वैसी स्थिति भविष्य में नहीं बने इसके लिये जरुरी होगा कि प्रधान सेनापति का कार्यालय तीनों सेनाओं में एकीकरण की प्रक्रिया को तेज करे। करगिल के युद्ध से करीब साढे तीन दशक पहले हुए भारत चीन युद्ध की ओर नजर डालें तो हमें समझ में आएगा कि क्यों हम चीन मोर्चे पर बुरी तरह मात खाए। क्यों हमने अपने वाय़ुसैनिक संसाधनों का इस्तेमाल नहीं किया और चीन की सेना को आगे बढ़ने से क्यों नहीं रोक पाए। साल 1962 के भारत चीन युद्ध में यदि वायुसेना का इस्तेमाल होता तो इस युद्ध के नतीजों की तस्वीर ही दूसरी होती। तब के सैन्य नेतृत्व में आपसी तालमेल की भारी कमी देखी गई औऱ सेना मुख्यालय अफरातफरी के माहौल में अपने स्तर पर फैसले लेने लगा जिसके घाव हम आज तक सहला रहे हैं।
प्रधान सेनापति का पद बनाया जाना देर से उठाया गया एक सही कदम है और जनरल बिपिन रावत ने पद सम्भालने के तुरंत बाद जो फैसले तीनों सेनाप्रमुखों के साथ बैठक में लिये गए वह दिखाता है कि जनरल रावत तीनों सेनाओं में एकीकरण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
