केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का पुलिस स्मृति दिवस पर अर्ध सैनिक बलों तथा पुलिस कर्मियों को उनके काम-काज के लिए बेहतर माहौल उपलब्ध कराने का भरोसा निश्चय ही जवानों में ऊर्जा का संचार करेगा। इस मौके पर उनका यह कहना कि जल्द ही पुलिस के काम के घंटे तय होंगे, एक सार्थक व सारगर्भित पहल है। लंबे समय से पूरे देश की पुलिस तनाव, खिंचाव व दबाव के बीच इसलिए काम कर रही है। कर्मियों की कमी से पुलिस के काम-काज के घंटे तय नहीं हैं और उसका असर अब पुलिसिंग के दौरान दिखाई दे रहा है। गृह मंत्री ने स्वयं कहा है कि नब्बे फीसद पुलिसकर्मियों को प्रतिदिन बारह घंटे से भी अधिक समय तक काम करना पड़ता है। लिहाजा यह पहल जितनी जल्दी मूर्त रूप ले ले समाज और देश के लिए उतना बेहतर होगा।
सच्चाई यह है कि पुलिस में कामकाज के घंटे तय नहीं है। मौजूदा भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के हिसाब से पुलिस को 24 घंटे ड्यूटी में माना जाता है। और ऐसा अमूमन होता भी है। ऊपर अफसर से लेकर नीचे सिपाही तक एक ही वातावरण में काम कर रहे होते हैं। अधिकारी वर्ग तो वाहन, आवास जैसे सुविधाओं के आधार पर आराम आदि कर लेता है तथा मन व शरीर को ड्यूटी के लायक बना लेता है। किंतु निचले स्तर का स्टाफ काम की अधिकता में अवकाश नहीं ले पाता, उसे छुट्टियां नहीं मिल पातीं वह कई रात तक घर नहीं जा पाता। बिना आराम किए ड्यूटी पर तैनात रहता है। ऐसे में उसकी कार्य शैली पर प्रतिकूल असर पड़ना स्वाभाविक है।
दरअसल आज पूरे देश में पुलिस बल की कमी है, देश का ऐसा कोई भी राज्य नहीं है जहां आबादी के अनुपात में पर्याप्त पुलिस बल हो। केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि मौजूदा समय में एक लाख की जनसंख्या पर महज 144 पुलिसकर्मी काम कर रहे हैं जबकि इनकी संख्या 222 होनी चाहिए। खाली पदों को भरने कि जिम्मेदारी राज्यों की इसलिए है क्योंकि पुलिस राज्यों का विषय है। किंतु राज्यों की अनदेखी राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी से बात वहीं की वहीं है। विडंबना तो यह है कि पुलिसकर्मियों के रिक्त पदों को भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट को आदेश देने पर रहे हैं। राज्य सरकारों को इस मामले में और तेजी दिखाने की जरूरत है।
नक्सल, उग्रवाद आतंकवाद की चुनौतियां आज सिर्फ सीमा या क्षेत्र विशेष तक सीमित न रहकर शहरों-कस्बों, गली-मुहल्लों तक आ चुकी हैं। ऐसे में पुलिस भर्ती के साथ-साथ पुलिस को और अत्याधुनिक बनाने की भी विशेष जरूरत है। केंद्र व राज्यों को इस बात को शिद्दत से महसूस करना होगा कि पुलिस आंतरिक सुरक्षा की पहली कड़ी है। पुलिसकर्मियों के मन व शरीर को स्वस्थ्य बनाए बिना उनसे आदर्श कार्य कुशलता की उम्मीद भला कैसे की जा सकती है। आठ घंटे से ज्यादा की ड्यूटी उनपर प्रतिकूल असर डालेगी ही। फिर भला गली-मुहल्लों की चौकसी, ट्रैफिक व्यवस्था से लेकर कानून-व्यवस्था आदि को पुख्ता कैसे किया जा सकता है? अभी पूरे देश में केवल केरल पुलिस में शिफ्ट के आधार पर ड्यूटी होती है। मध्य प्रदेश के पांच थानों में इसका सफल प्रयोग किया गया है। ऐसे में केंद्रीय गृह मंत्री की पहल जितनी जल्दी अमलीजामा पहन लेगी उतनी ही जल्दी पुलिकर्मियों बेहतर कार्य-कुशलता होगी और समाज का भला होगा।
