
रंजीत कुमार (वरिष्ठ पत्रकार)
रक्षा क्षेत्र में भारत और इस्राइल के रिश्ते जगजाहिर हैं लेकिन भारत और इस्राइल ने इसे सार्वजनिक तौर पर कभी स्वीकार नहीं किया। दोनों देशों के रक्षा सहयोग रिश्तों पर हमेशा ही पर्दा डाला जाता रहा और रोचक बात यह है कि किसी के पहले इस्राइल दौरे में रक्षा सहयोग के समझौतों पर किसी बातचीत से इनकार किया जाता रहा लेकिन जैसे ही नरेन्द्र मोदी तेलअवीव से छह जुलाई को रवाना हुए भारत और इस्राइल की रक्षा कम्पनियों ने ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत दो अरब डालर से अधिक के निवेश के समझौतों का ऐलान किया। इसके जरिए भारत में इस्राइली रक्षा कम्पनियों द्वारा अत्यधिक उच्च कोटि और तकनीक वाले सैन्य उपकरण और प्रणालियों का निर्माण होगा।
स्वाभाविक था कि प्रधानमंत्री मोदी के इस्राइल दौरे को भारतीय और अंतरराष्ट्रीय सामरिक हलकों में रक्षा सहयोग के चश्मे से ही देखा जाता। प्रधानमंत्री मोदी के इस्राइल दौरे में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू से बातचीत के बाद जारी साझा बयान में ऐलान किया गया कि दोनों देश अपने रिश्तों का स्तर ऊंचाकर सामरिक साझेदारी का कर रहे हैं। सामरिक साझेदारी के रिश्तों की बदौलत भारत इस्राइल से सुरक्षा क्षेत्र में बेहतर सहयोग विकसित कर सकेगा। वास्तव में इसके बिना भी संकट के वक्त जब भी भारत ने इस्राइल को याद दिया इस्राइल भारत की मदद को खड़ा दिखा। सभी को नहीं पता कि इस्राइल ने 1965 और 1971 के युद्ध में भी भारत को गोलाबारूद की आपात सप्लाई की थी। इसके बाद जब 1999 में जम्मू-कश्मीर में करगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी घुसपैठिये बर्फीले मौसम का फायदा उठाकर चुपचाप वहां अपना डेरा जमाने में कामयाब हो गए थे तब उन्हें बेदखल करने में इस्राइली सैन्य सहयोग की अहम भूमिका रही। करगिल की बर्फीली चोटियों पर जेहादियों के भेष में घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों को बेदखल करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा था और उन्हें हवाई हमले के जरिये ही तुरंत तबाह किया जा सकता था लेकिन भारतीय लड़ाकू विमानों में अचूक बमवर्षा करने वाली ऐसी प्रणालियां नहीं लगी थीं जिससे चोटियों पर बैठे घुसपैठियों के बंकरों को तहस नहस किया जा सके। संकट के ऐसे वक्त इस्राइल ने मदद का भरोसा दिया और भारतीय वायुसेना के मिराज-2000 लडाकू विमानों में ऐसे लेजर डेजिगनेटर पाड सप्लाई किए जिसकी बदौलत करगिल की चोटियों पर अचूक निशाना लगाकर राकेट गिराये जा सकते थे। करगिल की लड़ाई शुरु होने के एक महीने तक तो भारतीय थलसेना पर्वतीय युद्ध में प्रशिक्षित सैनिकों का ही इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये इस्तेमाल कर रही थी लेकिन जब मिराज-2000 विमानों में लेजर गाइडेड बम लग गए तो करगिल की चोटियों पर दुश्मन के बंकर एक-एक कर ध्वस्त होते गए।
उन्हीं दिनों 1998 के पोकरण परमाणु परीक्षणों की वजह से भारत अंतरराष्ट्रीय तकनीकी प्रतिबंधों का शिकार हो रहा था
और भारत को खासकर नवीनतम रक्षा तकनीक की सप्लाई पर विकसित देशों ने रोक लगा दी थी। लेकिन इस्राइल ने भारत पर लगे इस अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध की परवाह नहीं की और भारतीय वायुसेना के लिए विकसित हो रहे अवाक्स टोही विमान में फालकन रेडार की सप्लाई बेहिचक की। संकट के वक्त काम आने वाले ऐसे ही दोस्त से यही उम्मीद है कि आने वाले सालों में भी इस्राइल भारत की सैन्य ताकत मजबूत करने में मदद करता रहेगा। मेक इन इंडिया के तहत भारत में आधुनिक शस्त्र कम्पनियां खोलने का समझौता कर इस्राइल ने इसके प्रमाण दे दिये हैं।
