नई दिल्ली। अपनी तरह का ऐतिहासिक कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के सिटिंग जज जस्टिस सीएस करनन के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया। भारतीय न्याय इतिहास में पहली बार किसी सिटिंग जज को अवमानना का नोटिस जारी किया गया है। वह आज भी सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं हुए जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय बेंच ने उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया। कोर्ट ने जस्टिस करनन को दस हजार रुपये का निजी मुचलका भरने का भी निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के डीजीपी को स्वयं जमानती वारंट तामील करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 31 मार्च तक पेश होने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि उन्हें कोर्ट में पेश होने से सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं बचता है।
न्यायमूर्ति सी.एस. करनन ने अवमानना के मामले में जारी जमानती वारंट को ‘असंवैधानिक’ करार दिया
दूसरी तरफ कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सी.एस. करनन ने अपने खिलाफ अवमानना के मामले में शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय से जारी जमानती वारंट को ‘असंवैधानिक’ करार दिया है। साथ ही यह भी कहा कि यह सब जानबूझकर उनकी ‘जिंदगी बर्बाद’ करने के लिए किया गया है, क्योंकि वह एक दलित हैं।
जस्टिस करनन ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को फैक्स से संदेश भेजा था कि वह चीफ जस्टिस और दूसरे जजों से मिलना चाहते हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये उनके नोटिस का जवाब नहीं माना जा सकता है। जस्टिस करनन ने लिखा था कि उनके प्रशासनिक अधिकार पुनर्स्थापित किए जाएं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना की कार्यवाही चलाने का फैसला किया था। पिछले 13 फरवरी को भी अवमानना कार्यवाही का नोटिस मिलने के बावजूद जस्टिस करनन सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं हुए थे। पिछली सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि जस्टिस करनन के लेटर को देखते हुए उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमें ये कारण नहीं पता कि जस्टिस करनन कोर्ट में पेश क्यों नहीं हुए इसलिए हम इस मामले पर जस्टिस करनन से कुछ सवालों के जवाब चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस करनन के न्यायिक और प्रशासनिक अधिकार वापस ले लिए थे। कोर्ट ने जस्टिस करनन को निर्देश दिया था कि वह सभी न्यायिक फाइलें हाईकोर्ट को तत्काल प्रभाव से सौंप दें।
पूर्व चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाले कोलेजियम ने मार्च में उनका स्थानांतरण कर दिया था। जस्टिस करनन ने कहा है कि दलित होने के कारण उनके साथ भेदभाव किया जाता है। उन्होंने तबादले के आदेश को खुद ही आदेश पारित कर स्टे कर दिया था तथा चीफ जस्टिस को नोटिस देकर जवाब मांगा था। लेकिन बाद में वह मान गए।
