नई दिल्ली: भारतीय सेना प्रमुख जनरल बिपिन सिंह रावत को नेपाल सेना का जनरल (ओनेरेरी) बनाया जाना जितना हैरान करने वाला है उतना ही इसके पीछे दिलचस्प इतिहास भी है। …और दिलचस्प ये भी है कि ऐसा ओहदा नेपाली सेना के प्रमुख को भी भारतीय सेना की तरफ से दिया जाता है। पिछले साल 3 फरवरी को दिल्ली आने पर नेपाल के आर्मी चीफ जनरल राजेंद्र चेत्री को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी उन्हें ओनेरेरी जनरल ऑफ इंडियन आर्मी का सम्मान दिया था।

नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने भारत के सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन सिंह रावत को मानद उपाधि प्रदान की

यह मौक़ा है जनरल दलबीर सिंह सुहाग को नेपाल के जनरल की मानद उपाधि दिए जाने का

जनरल वीके सिंह को नेपाल के जनरल की मानद उपाधि देते राष्ट्रपति

नेपाल के आर्मी चीफ जनरल राजेंद्र चेत्री को इंडियन आर्मी चीफ की मानद उपाधि देते राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
दरअसल दोनो देशों का एक दूसरे के सेना प्रमुख को अपने सेना प्रमुख का ओहदा देना बरसों पुरानी परम्परा का हिस्सा है। दो देशों की सेनाओं के एक दूसरे के बीच बेहद खूबसूरत रिश्ते की गवाह ये परम्परा 1950 में शुरू हुई थी। इस परम्परा के तार ब्रिटिश शासनकाल के इतिहास के पन्नों को खंगालने से दिखाई देते हैं। वैसे दूसरा सीधा-सीधा नाता गोरखा योद्धाओं के शौर्य से भरपूर इतिहास से है। ऐसे योद्धा जिन पर हर कोई गर्व करता है।
दरअसल ब्रिटिश शासन काल में सेना में गोरखा रेजिमेंट की तादाद 10 थी। जब भारत आजाद हुआ तो ब्रिटिश सेना अपने साथ चार रेजिमेंट ले गई। इससे ये भी पता चलता है कि भारतीय सेना में गोरखा रेजिमेंट सबसे पुरानी रेजिमेंट है और ये आधुनिक भारतीय सेना के गठन से पहले ही वजूद में थी।

फील्ड मार्शल जनरल मानेकशा गोरखा रेजिमेंट के जवानों के साथ आत्मीय क्षणों में (फ़ाइल फोटो)
गोरखा रेजिमेंट की भर्ती नेपाल में होती थी और आज भी भारतीय सेना नेपाल में भर्ती रैली करती है। आजादी के बाद भारतीय सेना ने सातवीं गोरखा रेजिमेंट का गठन किया। भारतीय सेना में गोरखा रेजिमेंट का खास महत्व रहा है। इस रेजिमेंट ने हैदराबाद विलय के वक्त 1948 में पाकिस्तान से युद्ध में जौहर दिखाए थे। 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग में भी गोरखा रेजिमेंट ने हिस्सा लिया। संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के दौरान ये रेजिमेंट सियारा लोन और लेबनान में भी भारतीय फौज के तौर पर तैनात रही। यहां तक कि करगिल युद्ध में भी इसकी भूमिका दिखाई दी। अब भी पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में गोरखा रेजिमेंट की तैनाती खासी दमदार है।
इतना ही नहीं नेपाली मूल के लोगों के लिए भारतीय सेना में और भी रास्ते खुले हुए हैं। वे NDA की परीक्षा भी देते हैं। उनमें और भारतीय उम्मीदवारों में कोई भेदभाव नहीं किया जाता है।
ये तमाम हालात दोनों देशों के बीच और उनकी सेनाओं के बीच रिश्तों की मधुरता काफी हद तक स्पष्ट करते हैं। इसी रिश्तो को मजबूत रखने के लिए एक दूसरे की सेना के प्रमुख को अपनी सेना का जनरल मानने की भावनात्मक परम्परा चल रही है।
