नई दिल्ली। अब तक सुरक्षाकर्मियों के सहयोगी रहे विदेशी डॉग्स की जगह देसी नस्ल के डॉग्स शामिल किए जा रहे है। सेना में पहली बार देसी नस्ल के कुत्ते को जगह मिलने वाली है। अभी तक सेना में जर्मन शेफर्ड, लेब्राडॉर और ग्रेट स्विस माउंटेन जैसे विदेशी ब्रीड के कुत्तों को ही लिया जाता था। लेकिन पहली बार ‘मुधोल हाउंड’ नस्ल जोकि कर्नाटक में पाई जाती है, उसे अब सेना में शामिल किया जाएगा।
मेरठ में सेना की रीमाउंट एंड वेटेरिनरी सेंटर (RVC) में 06 मुधोल हाउंड को ट्रेनिंग दी गई है। दिसंबर में ये डॉग्स सेना के दस्ते से जुड़ जाएंगे। जम्मू-कश्मीर में इनकी पहली बहाली होगी।

‘मुधोल’ को सम्मान: 2005 में जारी हुआ था डाक टिकट (फाइल)
- RVC के अधिकारियों ने भी अब तक विदेशी ब्रीड के डॉग्स को ही ट्रेनिंग दी थी। देसी डॉग्स को ट्रेन करने के लिए उन्हें थोड़ा हटकर तैयारियां करनी पड़ीं। जैसे कि-
- शुरू में डॉग्स को अलग रखकर इनके मेडिकल टेस्ट किए गए। डॉग्स ‘मुधोल’ की क्षमता और कार्यकलाप का भी टेस्ट किया गया। फिर वैक्सीन के बाद उन्हें बेसिक इंस्ट्रक्शन समझने की ट्रेनिंग दी गई। इसके बाद इसे स्पेशल ट्रेनर के हवाले किया गया।
- मुधोल को RVC में ट्रेनिंग के लिए भेजने से पहले इनकी फिजिकल कैपिसिटी का पूरा अध्ययन किया गया। इसमें सफल होने पर इन्हें ट्रेनिंग स्कूल में भेजा गया। यहां मुधोल को स्पेशल तरीके से गार्ड डॉग और स्निफर डॉग के तौर पर प्रशिक्षण दिया गया।
- जिस काम को लेब्राडॉर और जर्मन शेफर्ड 90 सेकंड में करते हैं, ये उसे महज 40 सेकंड में कर देते हैं। प्रशिक्षण के दौरान भी मुधोल हाउंड की परफॉर्मेंस से सेना के अधिकारी संतुष्ट हैं क्योंकि उन्होंने 08 और मुधोल का ऑर्डर दे दिया है।
- मुधोल हाउंड देसी नस्ल है पर ये देसी कुत्तों की तुलना में जेनेटिक तौर पर अधिक मजबूत होते हैं। इस नस्ल के डॉग्स लंबे होते हैं और ज्यादा वजन भी नहीं होता। वजन ज्यादा से ज्यादा 28 किलो तक और लंबाई 72 सेमी तक हो सकती है।
- मुधोल हाउंड तेज भागने में हरफनमौला और थोड़ी मूडी होता है। यह तुरंत थकते नहीं और हमला करने में भी काफी तेज होते हैं। इन खूबियों के कारण से ये गार्ड डॉग का किरदार भलीभांति से निभा सकते हैं और अपने कर्तव्य का बखूबी पालन कर सकते हैं।

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