नई दिल्ली। इन दिनों सवाल किया जा रहा है कि यदि युद्ध हुआ तो क्या भारतीय वायुसेना चीन का मुकाबला कर पाएगी? चीन के पास ज्यादा बड़ी वायुसेना है और अपने विमान हैं। जबकि भारतीय वायुसेना के स्क्वॉड्रनों की संख्या जरूरत से कम है। NDTV ने भारतीय वायुसेना के पूर्व स्क्वॉड्रन लीडर समीर जोशी का हवाला देते हुए लिखा है कि चीनी सीमा पर हालात भारतीय वायुसेना के पक्ष में हैं।
साल 1962 की लड़ाई की सबसे बड़ी विडंबना थी कि भारतीय रक्षा-रणनीतिकारों ने अपनी वायुसेना का इस्तेमाल करने की कोशिश ही नहीं की। उपेक्षा का आलम यह था कि इस सिलसिले में बुलाई जाने वाली बैठकों में वायुसेनाध्यक्ष को बुलाया भी नहीं जाता था। उस जमाने की चीनी वायुसेना भारतीय वायुसेना के मुकाबले में कमजोर थी, दूसरे तिब्बत में उसका इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था।

भारतीय वायुसेना (आईएएफ)
NDTV के अनुसार तिब्बत के हवाई अड्डों पर हवा का घनत्व कम होने के कारण चीन के Su-27, J-11 या J-10 जैसे विमान अपनी क्षमता से कम भार ढो सकते हैं। इस वजह से वे उतने हथियार लेकर नहीं चल पाएंगे, जितने वे उठा सकते हैं। यदि टकराव हुआ तो ये विमान भारतीय वायुसेना के विमानों से मुकाबला नहीं कर पाएंगे।
स्क्वॉड्रन लीडर जोशी के अनुसार तिब्बत की पठारी सतह और भारतीय विमानों की तकनीक और ट्रेनिंग के कारण चीनी वायुसेना हल्की पड़ेगी। कम से कम अगले कई साल तक स्थिति यही रहेगी। चीनी हवाई अड्डे समुद्र की सतह से काफी ज्यादा ऊँचाई पर हैं। इसके अलावा वहाँ की आबोहवा और जलवायु विमानों के प्रदर्शन को प्रभावित करती है। जिसके कारण वे कम सामग्री लेकर चल सकते हैं और उनका कॉम्बैट रेडियस यानी कार्रवाई करने की परिधि क्षमता से करीब आधी रह जाती है।
दूसरी ओर भारतीय वायुसेना पूर्वोत्तर के जिन हवाई अड्डों से उनमें से ज्यादातर मैदानी इलाकों में हैं। इनमें से तेजपुर, कलाईकुंडा, छबुआ और हाशिमारा समुद्र तट के करीब हैं और समुद्र की सतह की ऊँचाई के करीब हैं। इस वजह से उनकी भार वहन क्षमता बेहतर है। इसके अलावा भारतीय वायुसेना के पास विदेशी, खासतौर से पश्चिमी देशों की वायुसेनाओं के साथ अभ्यास का बेहतर अनुभव है।
छोटी अवधि का युद्ध होने पर भारतीय वायुसेना चीन के काफी हद तक छकाने में कामयाब होगी। हालांकि चीन के पास लंबी दूरी तक मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल प्रणाली जैसे कि S-300, HQ-9 और HQ-12 हैं, जो हमारे लिए खतरा पैदा कर सकती हैं। पर इन मिसाइलों की पकड़ भी जल्दी हो सकती है। लंबी अवधि का युद्ध होने पर चीनी वायुसेना भारी पड़ सकती है, क्योंकि वह J-20 जैसे स्टैल्थ विमान बना रहा है।
