नई दिल्ली। सरकार ने रक्षा उत्पादन में भारतीय निजी क्षेत्र की भूमिका को बढ़ावा देने के लिए एक नई ‘सामरिक साझेदारी नीति’ को फाइनल किया था, जो छह साल पहले घरेलू कम्पनियों के विदेशी सहयोग के साथ सैन्य विमान निर्माण परियोजना शुरू की थी। पर देश की पहली और सबसे बड़ी सैन्य विमान निर्माण परियोजना अभी तक ठंडे बस्ते में है।
2015 में परियोजना को दी गई थी मंजूरी
रक्षा मंत्रालय के जानकारों के मुताबिक भारतीय वायुसेना के पुराने बेड़े ‘एवरो’ की जगह टाटा-एयरबस कंसोर्टियम और विदेशी निवेशकों के सहयोग से 56 मध्यम परिवहन विमानों यानी ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट्स के निर्माण के लिए फाइनल की गई 11, 929 करोड़ रुपये की परियोजना पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। मई 2015 में रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अगुवाई में टाटा-एयरबस परियोजना को मंजूरी दे दी थी।
वायुसेना के ‘एवरो’ बेड़े को 1960 के दशक में वायुसेना में शामिल किया गया था इस परियोजना के जरिए विदेशी भागीदारों को आठ साल के भीतर 16 एयरक्राफ्ट सप्लाई करने थे तथा अन्य 40 को भारतीय निवेशकों को भारत में ‘मेक इन इंडिया’ के तहत बनाने थे।
3.5 लाख करोड़ की योजनाएं लंबित
भारत में कम से कम 06 मेक इन मेक इन इंडिया परियोजनाओं को 3.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की़मत के वास्तविक चरणों पर हस्ताक्षर किए बिना अलग-अलग चरण में फंस गए हैं, जैसा कि पिछले महीने टोयोटा ने रिपोर्ट किया था। रक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार वाणिज्यिक बातचीत की अवस्था में ‘एवरो-प्रतिस्थापन’ परियोजना अधर में लटकी है।
