नई दिल्ली। चीन से आजादी चाहने वाले विद्रोही प्रांत ताइवान के साथ दिवपक्षीय निवेश समझौता(बीआईए) को भारत के केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है। माना जा रहा है कि इस समझौता के लागू होने के बाद भारत में ताइवान का आर्थिक निवेश काफी बढ़ेगा।
पूर्व एशिया में ताइवान एक आर्थिक ताकत माना जाता है जहां के अग्रणी कारपोरेट समूह भारत में निवेश की भारी आर्थिक सम्भावनाएं देखते हैं।
भारत और ताइवान के बीच यह समझौता ताइवान की राजधानी ताइपेई में इंडिया ताइपेई एसोसियेशन (आईपीए) औऱ नई दिल्ली स्थित ताइवान इकोनामिक एंड कल्चरल सेंटर के बीच सम्पन्न हुआ है।
दिवपक्षीय निवेश समझौता के जरिये दोनों पक्षों के बीच एक दूसरे के यहां निवेश में बढ़़ोतरी की उम्मीद की जा रही है। इससे दोनों पक्षों के व्यापारियों का एक दूसरे के यहां निवेश करने का भरोसा बढ़ेगा। इसके जरिये निवेश के मामलों में भेदभाव वाले नियमों से बचा जा सकेगा। इससे ताइवानी निवेशकों में भारत को एक पसंदीदा निवेश स्थल के तौर पर बढ़ावा मिलेगा।
गौरतलब है कि ताइवान के साथ भारत के सीधे राजनयिक सम्बन्ध नहीं हैं लेकिन दोनों पक्षों के बीच अनौपचारिक रिश्ता है। ताइवान ने अब तक चीन से अपनी आजादी नहीं घोषित की है लेकिन ताइवान के लोग अब अपने को एक स्वंतत्र देश के तौर पर देखना चाहते हैं। भारत ताइवान को चीन का ही हिस्सा मानता है। इसके बावजूद ताइवान के लोगों के साथ भारत के गहरे रिश्ते विकसित हो चुके हैं।
भारत और ताइवान के बीच छह अरब डालर से अधिक का दिवपक्षीय व्यापार होता है जिससे दोनों देशों के बीच गहरे आर्थिक रिश्तों का अनुमान लगाया जा सकता है।पिछले साल ताइवान से सांसदों के एक दल की भारत ने मेजबानी की थी जिसे लेकर चीन ने गहरा एतराज जताया था।
