नई दिल्ली। भारत ने Ulaan Baatar में आयोजित किए जा रहे आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (AMCDRR) के तीसरे दिन आपदा संबंधी सुदृढ़ता में अधिक निवेश करने, आपदा से जुड़ी सुदृढ़ता को बुनियादी ढांचागत विकास की मुख्यधारा में लाने और विशेषकर लू जैसे पुनरावृत्ति खतरों के लिए पूर्व चेतावनी प्रणालियों को बेहतर करने पर विशेष जोर दिया।
गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने आपदा संबंधी सुदृढ़ता में निवेश करने पर आयोजित परिचर्चा की अगुवाई की। इस परिचर्चा में इंडोनेशिया, फिलिपींस, वियतनाम, मंगोलिया और निजी क्षेत्र की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उच्चस्तरीय प्रतिनिधियों ने भाग लेते हुए इस विषय पर चर्चा की कि विभिन्न देशों की सरकारें ऐसे समय में आपदा संबंधी सुदृढ़ता में अपना निवेश कैसे बढ़ा सकती हैं, जब अन्य विकास क्षेत्रों के लिए पूरे संसाधनों की प्रतिस्पर्धी मांग बढ़ रही है। रिजिजू ने यह बात रेखांकित की कि अधिक निवेश के साथ-साथ इसके नतीजों की जवाबदेही भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। उन्होंने विभिन्न देशों की सरकारों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया कि वे आपदा जोखिम में कमी को एक अलग अतिरिक्त गतिविधि मानने के बजाय उसे राष्ट्रीय बजटीय प्रणाली का एक अभिन्न हिस्सा बना दें। उन्होंने कहा कि कई देशों जैसे कि मंगोलिया में अभिनव प्रयोग के तौर पर अपनाई गई ‘पूर्वानुमान आधारित वित्त पोषण’ प्रणाली से यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि आपदा जोखिम न्यूनीकरण के वित्त पोषण के सकारात्मक नतीजे सामने आयें।
इससे पहले प्रधानमंत्री के अपर प्रधान सचिव डॉ. पी.के. मिश्रा और मंगोलिया के निर्माण एवं शहरी विकास मंत्री Badilkhan की सह-अगुवाई में ‘आपदा सुदृढ़ता बुनियादी ढांचे को मजबूत करना और शहरी सुदृढ़ता’ विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की गई। उन्होंने विशेष जोर देते हुए कहा कि आपदा जोखिम में कमी को विकास की मुख्यधारा में लाये बगैर मृत्यु दर, प्रभावित लोगों की संख्या, आर्थिक नुकसान और बुनियादी ढांचागत नुकसान में कमी लाने संबंधी उन लक्ष्यों को प्राप्त करना लगभग असंभव होगा, जिनका उल्लेख आपदा जोखिम न्यूनीकरण से संबंधित Sendai Framework में किया गया है। इस संबंध में सुदृढ़ बुनियादी ढांचा बनाने पर काम करना अत्यन्त जरूरी है तथा इससे और ज्यादा सकारात्मक बदलाव सुनिश्चित हो सकते हैं।
पिछले सप्ताह मुम्बई में भारत की मेजबानी में आयोजित एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) की वार्षिक बैठक का उल्लेख करते हुए डॉ. मिश्रा ने यह बात रेखांकित की कि बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में निवेश के लिए एशिया की ओर से की जा रही मांग निरंतर बढ़ती जा रही हैं। उन्होंने कहा कि यह अत्यंत जरूरी है कि यह निवेश कुछ इस तरह से किया जाए, जिससे कि यह आपदाओं की दृष्टि से सुरक्षित साबित हो। इसके लिए क्षमता विकास के साथ-साथ व्यापक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी जरूरी है।
