नई दिल्ली। चीन से सटी सीमा पर हिफाजती और जंगी ताकत बढ़ाने के लिए खड़ी की जा रही है 17 माउंटेन स्ट्राइक कार्प्स के वक्त पर ऑपरेशनल हो जाने की संभावनाएं अब बढ़ गई हैं। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अपने राज के आखिरी साल में इसके गठन को हरी झंडी दी थी और इसका गठन तीन साल में हो जाने का लक्ष्य रखा गया था। पहले तो मंजूरी में हुई देरी और इसके बाद राजनीतिक स्तर पर कुछ ऊहापोह इसके गठन पर संकट के बादल ले आई थी।
- इस कार्प्स के गठन पर 64 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च का अनुमान था
90 हजार से ज्यादा सैनिकों वाली इस कार्प्स के गठन पर 64 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च का अनुमान था। इसमें 39 हजार करोड़ से ज्यादा तो पूंजीगत खर्च है। चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) पर दबाव बनाने के लिए भारत की ये पहली पर्वतीय जंगी कार्प्स ऐसा त्वरित कार्रवाई दल (QUICK REACTION FORCE- QRF) है जो दुश्मन से सिर्फ हिफाजत ही नहीं हर तरह के असरदार प्रहार की भी पूरी ताकत रखता है।

चीन से सटी सीमा पर हिफाजत के लिए सेना हो रही तैयार (प्रतीकात्मक फोटो)
लद्दाख से लेकर अरूणाचल प्रदेश तक चीन से सटी 4 हजार किलोमीटर की सीमा पर कड़ी दर कड़ी की तैनाती के लिए इसमें दो हाई एल्टीट्यूट इनफेंटरी डिवीजन हैं। बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी युद्ध करने में सक्षम 59 डिवीजन पश्चिम बंगाल के पानागढ़ में 72 डिवीजन पठानकोट में है। इसमें दो इनफेंटरी ब्रिगेड और 2 आर्मर्ड ब्रिगेड हैं।
- अक्टूबर 2013 में डिवीजन के अहम ओहदों पर तैनाती भी शुरू हो गई थी
इससे पहले भारतीय सेना की तीन स्ट्राइक कार्प्स है लेकिन वो पाकिस्तान से सटे 778 किलोमीटर का बार्डर संभालती है। मथुरा में (1 कार्प्स), अम्बाला में (2 कार्प्स) और भोपाल में (21 कार्प्स)। ये मैदानी और रेतीले इलाकों में तो हर तरह की कार्रवाई कर सकती है लेकिन दुरूह पहाड़ी क्षेत्रों में जंगी कार्रवाई के लिए अलग तरह की विशेषता और प्रशिक्षण की जरूरत होती है और ये काम 17 कार्प्स का होगा। पर्वतीय क्षेत्रों के खतरनाक रास्ते, संचार व्यवस्था के गड़बड़ रहने और मौसम की चुनौतियां जैसे कई कारणों के होते माउंटेन कार्प्स में सैनिकों की संख्या ज्यादा रखी जाती है।
17 जुलाई, 2013 को भारत सरकार की सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCS ) ने 17 स्ट्राइक कार्प्स का प्रस्ताव मंजूर किया था और 1 जनवरी 2014 को मेजर जनरल रेमंड जोसेफ नरोन्हा ने रांची में इसका नए डिजायन वाला ध्वज फहराया। रांची में इसका अस्थायी मुख्यालय रखा गया और इससे पहले अक्टूबर 2013 में डिवीजन के अहम ओहदों पर तैनाती भी शुरू हो गई थी।

जनरल सुहाग के कार्यकाल तक 59 डिवीजन में हो चुकी थीं 16,000 भर्तियां
साल भर पहले (जनवरी 2016) में भारतीय सेना के प्रमुख (INDIAN ARMY CHIEF) जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने ऐलान किया था कि 17 स्ट्राइक कार्प्स साल 2021 तक बन जाएगी। तब तक इसकी 59 डिवीजन में 16,000 भर्तियां हो चुकी थीं।
सैन्य साजो-सामान की खरीद की मंजूरी में देरी और राजनीतिक स्तर पर निर्णय जैसे कारणों ने पठानकोट की 72वीं डिवीजन की तैयारी पर असर डाल दिया था। पिछले साल तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने भी जब संसाधनों की कमी का हवाला दिया था तो इसे लेकर सवाल उठने लगे थे। हर साल आर्मी कमांडर कॉन्फ्रेंस में भी इस कार्प्स के गठन में देरी से जुड़े पहलू चर्चा का विषय रहे। वैसे कार्प्स के 250 मुख्यालय/यूनिटें बननी हैं जिनमें से 75 तो पिछले साल तक बन गई थी और 75 पर काम चल रहा है। उम्मीद की जा रही है कि बाकी 2021 तक बन जाएंगी। हालांकि इसे वक्त से पूर्ण करने की बात कही जा रही है। पठानकोट डिवीजन की तीन ब्रिगेड में से एक तैयार हो चुकी है।
- 17 माउंटेन स्ट्राइक कार्प्स के गठन की तैयारियों और ताकत का अंदाजा इसी से लागाया जा सकता है कि इसके पास तोपखाना, वायु रक्षक और इंजीनियरिंग विंग भी है। ये कार्प्स अग्नि सीरीज की बैलिस्टिक मिसाइल, ब्रह्मोस, लड़ाकू जेट, टैंक आदि से लैस किया जा रहा है।
