नई दिल्ली। सेना प्रमुख बिपिन रावत ने आदेश दिया है कि सेवानिवृत्त जनरलों के अधीन सहायकों को नहीं रखा जा सकता है और उन सैनिकों को उनके कार्यकाल के किसी बढ़े हुए समय में इस आधार पर इच्छित स्थानों जैसे दिल्ली या किसी अन्य बड़े शहर में रुकने की अनुमति प्रदान नहीं की जा सकती कि वे सेना की नीतियों और व्यवहार के कुछ निश्चित आयामों में सुधार के प्रयास में लगे हुए हैं जो परंपरा के तौर पर चला आ रहा है बनिस्बत तर्क के।
अंग्रेजी अखबार ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ ने इस मामले में जानकारों के हवाले से इस बाबत एक खबर प्रकाशित की है। माना जा रहा है कि सेना अध्यक्ष के इस आदेश के पीछे यह मान्यता है कि सैनिक का मतलब मोर्च पर लड़ना और सेवा में कार्यरत होना है न कि सेवानिवृत्त जनरलों के लिए कैंटीन के काम करना अथवा उनके लिए गोल्फ कोर्स के चारों ओर खेलने का सामान लेकर घूमना।
रक्षा मंत्रालय में इस तरह के मामलों से जुड़े रहे लोगों के मुताबिक ऐसे मुद्दों को रक्षामंत्री के समक्ष भी उठाया जा चुका है, हालांकि इसमें किसी तरह का बदलाव नहीं आया। सेना मुख्यालय ने यह व्यवस्था बनाई है कि जिस इकाई का जवान किसी सेवानिवृत्त जनरल के अधीन रखा पाया जाएगा, इसके लिए संबंधित कमांडिंग अधिकारी जिम्मेदार माना जाएगा।
यह भी बताया गया है कि दूसरे मामले में सेना प्रमुख ने अपने निजी चालकों को स्थानांतरित कर दिया है जिनके सेना भवन में छह वर्ष पूरे हो चुके हैं। उन्होंने अपने प्रशिक्षित वीवीआईपी चालकों को भी बदल दिया है जिन्हें दिल्ली की अव्यवस्थित सड़कों के बार में अच्छी जानकारी थी और उनकी जगह नए जवानों की तैनाती की जिनमें से एक दीमापुर (नगालैंड) से है। यह नियमित बदलाव केवल जवानों तक ही सीमित नहीं है बल्कि भारतीय सेना के उच्च अधिकारी तक के लिए है।
